ख़ाली नही रहा कभी आँखों का ये मकान;
सब अश्क़ बाहर गये तो उदासी ठहर गई!
दिल का बुरा नहीं हूँ;
बस लफ्जों मे थोड़ी शरारत लिए फिरता हूँ!
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं;
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं!
खुदा का शुक्र है कि ख्वाब बना दिए;
वरना तुम्हें देखने की तो हसरत ही रह जाती!
ना जाने किस रैन बसेरे की तलाश है इस चाँद को;
रात भर बिना कम्बल, भटकता रहता है इन सर्द रातों में!
थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद;
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इज़हार नहीं करते!
इजाजत हो तो मैं भी तुम्हारे पास आ जाऊँ;
देखो ना चाँद के पास भी तो एक सितारा है!
तेरा नजरिया मेरे नजरिये से अलग था;
शायद तूने वक्त गुजारना था और हमे सारी जिन्दगी!
यूँ तो मशहूर हैं अधूरी मोहब्बत के किस्से बहुत से;
मुझे अपनी मोहब्बत पूरी करके नई कहानी लिखनी है!
हुए जिस पे मेहरबां तुम कोई खुशनसीब होगा;
मेरी हसरतें तो निकली मेरे आँसुओं में ढलकर।