"प्यार की गज़लो को तराना मिल गया.
आपकी दोस्ती ऐसी मिली दोस्त...
जैसे खुदा की तरफ से कोई नज़राना मिल गया...
"युँही बे सबाब ना फिरा करो,
कोई शाम घर भी रहा करो..
वो गज़ल की सच्ची किताब है,
उसे छुपके-छुपके पड़ा करो..
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं..
ये महोब्बतों की कहनीयाँ..
जो सुना नहीं वो कहा करो..
जो कहा नहीं वो सुना करो.
Ghalib
Sharab Peeny De Masjid Me Beth Kar
Ya Wo Jagah Bata Jahan Khuda Nahi
Iqbal
Masjid Khuda Ka Ghar Hai Peeny Ki Jagah Nahi
Kafir K Dil Me Ja Wahan Khuda Nahi
Faraz
Kafir K Dil Se Aya Hun Me Ye Dekh Kar
Khuda Mojood Hai Wahan Par Usy Pata Nahi
Wasi
Khuda To Mojood Duniya Me Har Jagah
Tu Jannat Me Ja Wahan Peena Mana Nahi
Saqi
Peeta Hun Gham-e-Duniya Bhulany K Liye Saqi
Jannat Me Kon Sa Gham Hai Is Liye Wahan Peeny Me Maza Nahi...
हाँ ज़माना भी मुझे अब गैर कहता है,
मेरे शब्दों की मोहब्बत को वो शेर कहता है,
पता है न तुम्हे जब भी हम कुछ गुनगुनाते थे,
वो उन बीती यादो को ज़ख़्म का ढेर कहता है,
तमामें गुजरा वक़्त ऐसा के फिर वो लौट न पाया,
तेरे जाने की स्र्ख़सत को वो किस्मत का फेर कहता है,
खता क्या की थी जो हमने भी, एक ख्वाब देखा था,
मगर ये ख्वाब को भी वो काँटों का पेड़ कहता है,
बहुत ढूंढा तुझे मैंने ज़माने से यूँ छुप –छुपकर,
मेरे जज्बात को भी वो गले की टेर कहता है…
मेरे प्यार मे क्या कमी रह गई
मेरी तन्हा-सी क्यों जिन्दगी रह गई
बहुत मिन्नतें की तुम्हारे लिए
अधूरी मगर आरजू रह गई
बहुत आरजू थी तेरे प्यार की
मगर आँख में बस नमी रह गई
भुलाने की कोशिश बहुत हमने की
मगर याद दिल मे बसी रह गई
अब कभी भी न मिल पाउगा मै तुम्हें
तू जुदा थी जुदा है जुदा रह गई
जख़्म दिल के हरे हरे से रहते हैं
सभी अरमान भरे-भरे से रहते हैं
शराफ़त ही होता है जिन लोगों का ईमां
न जाने क्यों डरे-डरे से रहते हैं
बड़ा मुश्किल है सह पाना सच्चे इंसां को
ऐसे आदमी से लोग परे-परे रहते हैं
बस गये हैं इतने ग़म दिल में
इसलिये तो हम भरे-भरे से रहते हैं
मिल ना पाई कोई ऐसी बस्ती हमें
जहां पर बाशिंदे खरे-खरे से रहते हैं
शैतानियाँ दुहरानें को आ
मुझे मुझसे मिलानें को आ
साँसें बिन तेरे तन्हा हैं
फिर से मुझे गले लगानें को आ
हर-वक्त ज़िंदा मुझमें तू हैं
किसी बहानें ये समझानें को आ
सफर में ऐसे ही कैसे चलेगा
दो कदम तो साथ निभानें को आ
मुझमें तस्वीर तेरा तस्व्वुर हैं
मेरे इन ख्वाब को सजानें को आ
आ फिर से सब ये दुहरानें को आ
फिर से मुझे गले लगानें को आ
थक चुका हूँ बहोत मैं यूं
निगाहों से ही कुछ पिलानें को आ
क्यूं कैसी और क्या हैं तेरी मजबूरी
कब तक रहूँ यूहीं यही बतानें को आ
कुछ और करीब आनें को आ
मेरें सीनें में अब समानें को आ
शैतानियाँ दुहरानें को आ
मुझे मुझसे मिलानें को आ
Kabhi tum mujhe kareeb se aa k dekhna
Aise nahi jara aur paas aa ke dekhna,
Main tum se kitna pyar karta hoon,
Mujhe kbhi seene se laga kar dekhna,
Main tumhe ashko ki kataar me najar aaunga
Meri yaad me kabhi aansu baha ke dekhna,
Meri ghazal pad kar bhi tum par asar na ho
Toh logo ko meri ghazal suna ke dekhna..!!
Ghazal Lovers K Liye ♡
Jalte honton pe tabassum jo
machalta hai kabhi,
Zakhm dhul jaate hain sawan jo
barasta hai kabhi, ♡
Main ne sochon mein taraashe
hain khad-o-khaal tere,
Mere baare mein bata tu ne bhi
socha hai kabhi..?? ♡
Chardte suraj se kabhi tu ne
milayi hai nazar,
Tu ne kirno ki taraf gaur se
dekha hai kabhi..?? ♡
Log kahte hain ke patthar mein
khilte hain ummidon ke Gulab,
Yun bhi mumkin hai bata aisa bhi
hota hai kabhi..?? ♡
Tu ne samjha tha ke wo laut ke
ajaaye ga
Aankh se bichrda hua ashk bhi lauta
hai kabhi...?? ♡
Kabhi Tum Mujhe Qareeb Se Aa K Dekhna
_
Aise Nahi Zara Or Paas Aa K Dekhna
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Main Tum Se Kitna Pyar Karta Hon
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Mujhe Kabhi Seene Se Laga Kar Dekhna
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Main Tujhe Ashko'n Ki Qataar Main Nazar Aaun Ga
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Meri Yaad Main Kabhi Aansu Baha K Dekhna
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Main Tujh Pe Jaan Bhi De sakta hun
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Meri Wafa Ko Kabhi Aazma K Dekhna
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Meri Gazal Parh Kar Bhi Tum Par Asar Na Ho To
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Logo Ko Meri Ghazal Suna K Dekhna"bewis ajans